इस संसार मे इतने लोग हैं, इतने जीव जन्तु हैं लेकिन सबका जीवन अलग अलग है। कभी गौर किया है कि एक ही संसार मे रहते हुवे भी सबकी किस्मत अलग अलग क्यों है। यहां गरीब से गरीब और अमीर से अमीर व्यक्ति मिलेगा। कोई बिलकुल स्वस्थ तो कोई पैदा ही रोग के साथ होता है। किसी की उम्र 90 साल तो कोइ कम उम्र मे ही शरीर त्याग देता है। ये और कुछ नही कर्म का ही फल है। हमारे कर्म ही हमारा भाग्य निर्माण करते हैं। ईश्वर की न्याय व्यवस्था बहुत ही ज्यादा सदृढ़ है। अच्छे कर्मो के अच्छे प्रभाव और बुरे कर्मो प्रभाव झेलने पड़ते ही हैं हमे। याद रखो तुम्हारे साथ कुछ भी अकारण घटित नही हो रहा।
श्री कृष्णा ने भी गीता मे कर्मो को ही उत्तम बताया है। क्या आप इस बात से अवगत है कि भीष्म पितामह ने ध्यान करके अपने 73 वे जन्म तक देखा। उन्होंने श्री कृष्ण से पूछा कि उन्होंने कोइ कुकर्म नही किया फिर क्यों वाणों की शय्या पर सोना पड़ा। तब भगवान श्री कृष्ण ने उनको 74 वे जन्म की बात बताई जब किशोरा अवस्था मे उन्होने पत्ते पर बैठी टिड्डी के शरीर मे कांटा चुभोया था और उस कर्म का फल घूमते घूमते अब मिल रहा है। महाभारत मे जो धृतराष्ट्र थे वो भी स्वाद मे अंधे होने की वजह से अंधे बने। धृतराष्ट्र बिना विचार किए जो सामने आता खा लेते। एक बार एक रसोइए ने हंस के सौ बच्चों का मास बनाकर एक एक कर राजा को खिला दिया जिसका फल उनको सौ जन्म के बाद भोगना पड़ा।याद रखो यहां तक कि स्वयं भगवान राम और माता सीता भी कर्मो के भोग से वंचित नहीं रह पाए।
इसलिए अपने कर्मो के प्रति सचेत हो जाओ। और यूनिवर्स को समझो यहां कुछ भी आपके साथ बेवजह नही हो रहा इसलिए शुक्राना भाव रखो जो आपको बुरा लगे वह दूसरे को कभी न दें जैसे कड़वी बातें, गाली, गुस्सा, अपमान इत्यादि। जो चीज़े आपको अच्छी लगे वो बिना मांगे दो मिठी बातें,सद्व्यवहार, सम्मान, भोजन इत्यादि दोनो हाथों से बांटो। परोपकार करो। याद रखो तुम संसार को कुछ देने ही आए हो। अपनी आत्मा से जुड़ना सीखो ताकि अच्छे बुरे कर्मो मे भेद पता चले और अपने सत्कर्मों से अपना आने वाला कल सुधार पाओ।
